एक शक्सियत का फेर अब्र है
उस लालसा के काबू में
जो उँगलियों पे ठहरा है कई हसरतें कैद कर के
धागों सी है ये मुलाकातें
जो जब टूट जायें मालूम नहीं
उन आखों को याद कर लेते हम अगर दीदार मुकम्मल करते
कहने को तो सिर्फ दो ही बातें थी
जो आज फिर नहीं कह सके और लौट आये
उलझनों में लिपट कर रह गए
बस इंतज़ार का इंतज़ार करते करते
वक्त जितना भी था अच्छा था
जिसकी कमी को दीवार समझ बैठे
दौर बन के गुज़र गया है अब
वो फ़रियाद करते करते
और वो शक्स मेरे लिए था, है या होगा
ये एक सवाल है जिसे मै दफन कर आया हूँ
थक गया था इसके जवाब का इंतज़ाम करते करते
एक शक्सियत का फेर अब्र है
उस लालसा के काबू में
जो उँगलियों पे ठहरा है कई हसरतें कैद कर के