कागज़ के ऊपर बहने दे
उन तनहाईयों को,
उन रंजिशों को,
उन आंसुओं को,
उन ख़्वाबों को,
उन लोगों को,
जो घर कर के बैठे हैं
पता नहीं कौन से दिल के कोने में,
दिमाग को समझाकर भी क्या करें,
उस दिल का क्या करें
जो समझता नहीं है,
रोको तो रुकता नहीं है,
वो उसके अहसास में बहता है,
मेरी कलम बहती है
उसके अहसास को मिटाने के लिए,
उस ज़िददी से दिल को मनाने के लिए........