सिर्फ तुम ही तुम। (©रूपेश सिंह वरेण्यमलय)
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मैं जब भी याद करता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नही,
मैं जब भी बात करता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नही,
एक दिन सफेद दिख रही थी पड़ियो सी तुम,
मैं भी खुदा समझ बैठा था खुद को।
बादलों की चादर में समेटना चाहा था तुमको।
फिर ऐसा लगा कि तुमने तो मुझे कुछ कहा ही नही।
तुमने तो मुझे चाहा भी नही।
लेकिन मैं जब भी चाहता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नहीं।
मैं जब भी पुकारता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नहीं।
एक दिन, बन चांदनी, तुम बरस मोतियों सी रहीं।
मैं भी चाँद बनने चला था, दूर क्यू मुझसे हुई।
फिर ऐसा लगा कि तुमने तो मुझे सुना ही नही।
तुमने तो मुझे देखा भी नही।
लेकिन मैं जब भी देखता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नही,
मैं जब भी महसूस करता हूँ सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नही,
एक दिन सोचा, बन हवा का झोंका, छू लूँगा पंखुरी तेरे फूलों का।
गर कोमल पंखुड़ी टूट गिरे, थामूंगा तुम्हे बन पंकधरा ।
फिर ऐसा लगा कि तुमने तो मुझे महसूस किया ही नही।
तुमने तो मुझे अपना माना भी नही।
ये तो सिर्फ़ मैं था, जो चाह रहा था, तुम तो किसी और की थीं।
जो तुम्हे दूर ले जा रहा था।
वह आया बाहें थाम ले चला, मैं गुमशुम चुप रह गया देखता।
अब जब कि तुम कहीं भी नही....
ना उसकी जिंदगी, ना मेरी....
मैं जब भी रोता हूँ सरेशाम वजह सिर्फ तुम ही तुम होती हो कोई और नही,
लेकिन
मैं अब भी तुम्हे ढूँढता हूँ ...............सितारों में कहीं।
जहां सिर्फ तुम ही तुम दिखती हो कोई और नही......
©रूपेश सिंह वरेण्य मलय@2020