तेरे चेहरे पे चमकता वो काला तिल,
मेरे सीने में धड़कता वो तेरा दिल
सुहाना सा, तेरी आखों का वो काजल,
हँसाना तेरा, जैसे आज कर ही देगी तू पागल,
तेरी आवाज़ को तरसते मेरे कान,
मेरे हक़ के लिए लड़ता तेरा स्वाभिमान,
रुई से भी कोमल लगते है तेरे पैर,
देखते ही तुझे लगते है सारे गैर,
इतनी सी इल्तेजा काफ़िर की, सुन एक बार,
न मंदिर ना मस्ज़िद, बस तेरा दरबार,
बड़ी देर से ही सही, आज लिखता हूँ ये कलाम,
सीर पैर से नहीं,
दिल से,
ऐ माँ तुजे सलाम ।।
-KPJ