सिलसिला छिड़ गया जब यास के फ़साने का
शमा गुल हो गयी दिल बुझ गया परवाने का
वाए हसरत कि ताल्लुक़ न हुआ दिल को कहीं
न तो काबे का हुआ मैं न तो सनम-खाने का
खिल्वत-ए-नाज़ कुजा और कुजा अहल-ए-हवस
ज़ोर क्या चल सके फ़ानूस से परवाने का
वाह किस नाज़ से आता है तेरा दौर-ए-शबाब
जिस तरह दौर चले बज़्म में परवाने का