Vidyapati Thakur

the poet cuckoo of Maithili] (1352 - 1448 / Bishphi / Bihar, India

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक - Poem by Vidyapati Thakur

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल..

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, दुःख ककरो नहिं देल !
एही जोगिया के भाँग भुलैलक, धतुर खोआई धन लेल !१!

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, जन भरी के नहिं जान !
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, रतियक सन नहिं कान !२!

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत अभरन, अपने रुद्रक माल !
अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, अनका लै जंजाल !३!

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, वाहि देवा नहिं थोर !
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका दिगम्बर मोर !४!
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