Uday Prakash

1 January 1952 / Madhya Pradesh / India

दिल्ली - Poem by U

समुद्र के किनारे
अकेले नारियल के पेड़ की तरह है
एक अकेला आदमी इस शहर में.

समुद्र के ऊपर उड़ती
एक अकेली चिड़िया का कंठ है
एक अकेले आदमी की आवाज़

कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं दिल्ली में
असंख्य जगमग जहाज
डगमगाते हैं चारों ओर रात भर
कहाँ जा रहे होंगे इनमें बैठे तिज़ारती
कितने जवाहरात लदे होंगे इन जहाजों में
कितने ग़ुलाम
अपनी पिघलती चरबी की ऊष्मा में
पतवारों पर थक कर सो गए होगे.

ओनासिस ! ओनासिस !
यहाँ तुम्हारी नगरी में
फिर से है एक अकेला आदमी.
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