.. हवा हूँ मैं
मैं...
हवा हूँ मैं, जो कभी ठहरता नहीं,
ठहर जाऊँ अगर, तो फिर बहता नहीं।
हवा हूँ मैं, जो कभी किसी को दिखता नहीं,
जो महसूस कर ले मुझे—बिना कहे, उसके साथ रहता नहीं
हर पल साथ हूँ, पर कभी दिखाई नहीं देता,
और अगर दिख भी जाऊँ, तो शांत कभी लगता नहीं।
मैं हवा हूँ न... ना ठहरता, ना दिखता हूँ,
मगर प्यार से बाँध लो, तो खुद को बाँध भी जाता हूँ में।
कभी चंचल, कभी मुस्कुराता हूँ मैं,
कभी शीतल सा, तो कभी लू सा जलता हूँ मैं।
हवा हूँ मैं... इसीलिए कह कर भी,
कई बार कुछ कहता नहीं हूं मैं।