Srimati Tara Singh

India

खत उसका जब जलाने लगा - Poem by Srimati Tara Singh

खत उसका जब जलाने लगा
शब्द - शब्द आँसू बहाने लगा

हुस्न तो चुपचाप था , इश्क
का ही पावँ लड़खड़ाने लगा

धरती - अम्बर काँप उठा
बसंत मरसिया गीत गाने लगा

तमाम उम्र जिसके साये में गुजरा
आहिस्ता- आहिस्ता दूर जाने लगा

पत्ता - पत्ता , यह कहने लगा
गुल कहाँ है,बाग तो जाने लगा
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