जलते हैं शोले अंगारों के साथ
रहता है मक्कार, मक्कारों के साथ
अब शिकायत कैसा करना उससे
जो जीता है लगकर दीवारों के साथ
पीता है खून, उगलता है आग
सोता है मै-कदा में यारों के साथ
गँवाता है होश, रहता है बेहोश
डोलता है अपने बीमारों के साथ
अब आया समझ में, क्यों होता है
मुश्किल जीना, समझदारों के साथ