Shakeeb Jalali

1 October 1934 – 12 November 1966 / Aligarh / British India

उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में - Poem by Shakeeb Jalali

उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में
क्या क्या न अक्स तैर रहे थे सराब में



कब से हैं एक हर्फ़ पे नज़रें जमीं हुईं
वो पढ़ रहा हूँ जो नहीं लिक्खा किताब में



फिर तिरगी के ख़्वाब से चौंका है रास्ता
फिर रौशनी-सी दौड़ गई है सहाब में



पानी नहीं कि अपने ही चेहरे को देख लूँ
मन्ज़र ज़मीं के ढूँढता हूँ माहताब में



कब तक रहेगा रूह पे पैराहन-ए-बदन
कब तक हवा असीर रहेगी हुबाब में




जीने के साथ मौत का डर है लगा हुआ
ख़ुश्की दिखाई दी है समन्दर को ख़्वाब में



एक याद है कि छीन रही है लबों से जाम
एक अक्स है कि काँप रहा है शराब में
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