Shakeeb Jalali

1 October 1934 – 12 November 1966 / Aligarh / British India

वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था - Poem by Shakeeb Jalali

वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था
मगर वो फूल-सा चेहरा नज़र न आता था

मैं लौट आया हूँ ख़ामोशियों के सहरा से
वहाँ भी तेरी सदा का ग़ुबार फैला था

क़रीब तैर रहा था बतों का एक जोड़ा
मैं आबजू के किनारे उदास बैठा था



बनी नहीं जो कहीं पर कली की तुर्बत थी
सुना नहीं जो किसी ने हवा का नौहा था



ये आड़ी-तिर्छी लकीरें बना गया है कौन
मैं क्या कहूँ कि मेरे दिल का वरक़ तो सादा था



उधर से बारहा गुज़रा मगर ख़बर न हुई
कि ज़ेर-ए-सन्ग ख़ुनुक पानियों का चश्मा था




वो उस का अक्स-ए-बदन था कि चांदनी का कँवल
वही नीली झील थी या आसमाँ का टुकड़ा था
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