Ram Vilas Sharma

10 October 1912 - 30 May 2000 / Unnao, Uttar Pradesh / India

केरल - Poem

एक घनी हरियाली का सा सागर
उमड़ पड़ा है केरल की धरती पर
तरु पातों में खोए से हैं निर्झर
सुन पड़ता है केवल उनका मृदु स्वर

इस सागर पर उतरा वर्षा का दल
पर्वत शिखरों पर अँधियारे बादल
हरियाली से घनी नीलिमा मिलकर
सिन्धु राग-सी छाई है केरल पर

घनी घूम की गुंजें शिखर शिखर पर
झूम रहा हो मानो उन्मद कुंजर
ऐसे ही होंगे दुर्गम कदलीवन
कविता में पढ़ते हैं जिनका वर्णन

सीमा तज कर एक हो गए सरि सर
बाँहें फैलाए आता है सागर
कल्पवृक्ष हैं यहीं, यहीं नंदन वन
नहीं किंतु सुर सुंदरियों का नर्तन

घनी जटाएँ कूट कूट कर बट कर
पेट पालते है ज्यों त्यों कर श्रमकर
यही वृक्ष है निर्धन जनता का धन
अर्धनग्न फिर भी नर नारी के तन

जिन हाथों ने काट काट कर पर्वत
यहाँ बनाया है दुर्गम वन में पथ
कब तक नंदन में श्रमफल से वंचित
औरों की संपदा करेंगे संचित

अर्ध मातृ सत्ताक व्यवस्था तज कर
नई शक्ति से जागे है नारी नर
लहराता है हरियाली का सागर
फिर सावन छाया है इस धरती पर
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