माँ के बारे में जितना कहूँ, उतना कम है ।
माँ के संग होने से, ना किसी बात का गम है ।
माँ के बारे में क्या कहूँ, लड़ती वो कितनी जंग है ।
माँ वो रक्षा कवच है, जो आने ना देती
बच्चे तक आंच है ।
माँ को किस नाम से परिचित कराऊँ, उनके अनेक रूप है
कभी वो दोस्त, कभी वो शिक्षक
कभी कभी तो बहन भी है ।
माँ पिलाती है बच्चे को दूध, जिसका चुका ना सकते
हम कभी दाम है ।।
......
माँ के बारे में जितना कहूँ, उतना कम है ।
माँ के संग होने से, ना किसी बात का गम है ।
माँ के बारे में क्या कहूँ, लड़ती वो कितनी जंग है ।
माँ वो रक्षा कवच है, जो आने ना देती
बच्चे तक आंच है ।
माँ को किस नाम से परिचित कराऊँ, उनके अनेक रूप है
कभी वो दोस्त, कभी वो शिक्षक
कभी कभी तो बहन भी है ।
माँ पिलाती है बच्चे को दूध, जिसका चुका ना सकते
हम कभी दाम है ।।
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