Nida Fazli

12 October 1938 / Dehli / India

दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं - Poem by Nida Fazli

दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं
कोई नहीं बोलता जब तनहाइयाँ बोलती हैं

परदेस के रास्ते में लुटते कहाँ हैं मुसाफ़िर
हर पेड़ कहता है क़िस्सा पुरवाईयाँ बोलती हैं

मौसम कहाँ मानता है तहज़ीब की बन्दिशों को
जिस्मों से बाहर निकल के अंगड़ाइयाँ बोलती हैं

सुन ने की मोहलत मिले तो आवाज़ है पतझरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियाँ बोलती हैं
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