Naresh Mehta

1922 - / Shajapur, Malwa, Madhya Pradesh / India

इतिहास और प्रतिइतिहास - Poem by Naresh Mehta

राम : क्या यही है मनुष्य का प्रारब्ध ? कि
कर्म
निर्मम कर्म
केवल असंग कर्म करता ही चला जाए ?
भले ही वह कर्म
धारदार अस्त्र की भांति
न केवल देह
बल्कि
उसके व्यकित्व को
रागात्मिकताओं को भी काट कर रख दे।
क्या यही है मनुष्य का प्रारब्ध ??

क्या इसीलिए मनुष्य
देश और काल की विपरीत चुम्बताओं में
जीवन भर
एक प्रत्यंचा सा तना हुआ
कर्म के बाणों को वहन करने के लिए
पात्र या अपात्र
दिशा या अदिशा में सन्धान करने के लिए
केवल साधन है ?
मनुष्य
क्या केवल साधन है ?
क्या केवल माध्मय है ??

लेकिन किसका ?
कौन है वह
अपौरुषेय
जो समस्त पुरुषार्थता के अश्वों को
अपने रथ में सन्नद्ध किये हैं ?
कौन है ?
वह कौन है ??

मनुष्य की इस आदिम जिज्ञासा का उत्तर-
किसी भी दिशा पर
कभी भी दस्तक देकर देखो,
किसी भी प्रहर के
क्षितिज अवरोध को हटाकर देखो
कोई उत्तर नहीं मिलता राम !
दस्तकों की कोई प्रतिध्वनि तक नहीं आती
शून्य से किसी का देखना नहीं लौटता।

दिशा
चाहे वह यम की हो
या इन्द्र की-
जिसे प्राप्त करने के लिए
अनन्तकाल से सप्तर्षि
यात्रा-तपस्या में लीन है,
परन्तु
दिशाएँ-
उत्तर की प्रतीक्षा में
स्वयं प्रश्न बनींषय्गन।
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