मन ! देखि य़ा रे, पुरीर रथय़ातरा ।
जगन्नाथङ्कर गुण्डिचा बिजय
दिशुअछि केड़े तोरा ॥
रे मन … (०)
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नीळाचळनाथ प्रभु जगन्नाथ
य़हिँ कैबल्य पसरा ।
कोटि नरनारी रहिछन्ति पूरि
दर्शन दुःख- पाशोरा ॥
रे मन … (१)
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ताळध्वज रथे बिजे बळराम
नन्दिघोषे गिरिधरा ।
दर्पदळनरे भगिनी सुभद्रा
तिनि मूर्त्ति चित्त-हरा ॥
रे मन … (२)
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प्रभुङ्क महिमा कि देबा उपमा
से जगतनाथ परा ।
राजा इन्द्रद्युम्न करिले स्थापन
य़श गाउछि ए धरा ॥
रे मन … (३)
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हरिङ्क प्रसाद खण्डे परमाद
आनन्द बजारे भरा ।
भुञ्जुछन्ति भक्ते आनन्दित होइ
भुलि निज दुःख सारा ॥
रे मन… (४)
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जगन्नाथङ्कर उत्सब अपार
देखुअछि परम्परा ।
ध्याये नारायण भरसा से प्रभु
हरिबे कषण भारा ॥
रे मन … (५)
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