बन्दइँ श्रीगणनाथ, सदाशिब य़ार तात ।
कुङ्कुम घटिरु निज श्रीअङ्गरु, दुर्गादेबी कले जात ॥
जाईफुल रे ॥ (१)
आहे देव गणपति, घेन मोहर बिनति ।
सुप्रसन्न होइ पद दिअ कहि, मुहिँ अटेँ मूर्खमति ॥
जाईफुल रे ॥ (२)
बन्दइँ देबी शारळा, मम कण्ठे कर खेळा ।
न आसिला पदमान कहि दिअ, पद आसु अनर्गळा ॥
जाईफुल रे ॥ (३)
बन्दइँ काळी कपाळी, गळारे मन्दार-माळी ।
रणे मतुआळी रक्त पान करि, रङ्गे नाचु ढळि ढळि ॥
जाईफुल रे ॥ (४)
बन्दइँ सिंह-बाहिनी, महिषासुर-मर्द्दिनी ।
अभय-दायिनी बिपद-भञ्जनी, घेन मोहर दयिनी ॥
जाईफुल रे ॥ (५)
बन्दइँ मा मङ्गळाई, तो पादे जणाएँ मुहिँ ।
अमङ्गळ काळे तो नाम धइले, सर्ब मङ्गळ हुअइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६)
चइत्र आश्विन मास, पड़इ तो उपबास ।
एकमने नारी तोते पूजा कले, गर्भे देउ बाळ शिष्य ॥
जाईफुल रे ॥ (७)
कहे दीन मनोहर, मङ्गळा मा दया कर ।
दण्डनाट गीत कहिबाकु चित्त, बळिला आसि मोहर ॥
जाईफुल रे ॥ (८)
माल्याणी य़ेपरि फुल, गुन्थि निए माळ माळ ।
सेहिपरि मोर गळे उपहार, लम्बिथाउ माळ माळ ॥
जाईफुल रे ॥ (९)
महादेब उमासाइँ, ताङ्कु जणाउछि मुहिँ ।
मोहर बिपद थिले सदानन्द, अबश्य करिबे त्राहि ॥
जाईफुल रे ॥ (१०)
बड़ देउळरे हरि, सङ्गे बिजे हळधारी ।
मध्यरे सुभद्रा बिजे करिछन्ति, श्रीमुख चन्द्रमा परि ॥
जाईफुल रे ॥ (११)
ब्रह्मा बिष्णु महेश्वर, य़ेते दश दिगपाळ ।
सर्ब देबताङ्कु बन्दना करुछि, शिरे य़ोड़ि बेनि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (१२)
अजणा अपढ़ा मुहिँ, लेखिबाकु शक्ति नाहिँ ।
सात काण्ड रामायणर चरित, ठिके ठिके कहिबइँ ॥
जाईफुल रे ॥ (१३)
पार्वती आगे शङ्कर, कहे रामायण सार ।
सरय़ू गङ्गार तटरे अय़ोध्या, नामे अछि एक पुर ॥
जाईफुल रे ॥ (१४)
तहिँ दशरथ राजा, सुखे पाळन्ति परजा ।
कौशल्या कैकेयी सुमित्रा सहिते, ताङ्क तिनिटि भारिजा ॥
जाईफुल रे ॥ (१५)
अपुत्रिक राजा थिले, प्रभुङ्क करुणा बळे ।
ऋष्यशृङ्ग मुनि बरि आणि पुणि, य़ज्ञ बिधि आरम्भिले ॥
जाईफुल रे ॥ (१६)
य़ज्ञ चरु राजा घेनि, बाण्टि देले तिनि राणी ।
तिनि राणी ठारु चारि मूर्त्ति धरि, जन्मिले कोदण्ड-पाणि ॥
जाईफुल रे ॥ (१७)
बाल्य काळे चापधारी, ताड़का असुरी मारि ।
शिब धनु भाङ्गि सीता बिभा हेले, पर्शुराम दर्प हरि ॥
जाईफुल रे ॥ (१८)
मन्थरा बोले कैकेया, राजा आगे कला माया ।
दशरथ आगे सत्य कराइला, नृप न जाणिले ताहा ॥
जाईफुल रे ॥ (१९)
राम राजा हेबा शुणि, रुषिला कैकेयी राणी ।
भ्रत राजा हेउ राम बन य़ाउ, एतिकि मोर मागुणि ॥
जाईफुल रे ॥ (२०)
राजा सनमत कले, भरतकु राज्य देले ।
श्रीराम लक्ष्मण सीता तिनि जण, बनबासे चळिगले ॥
जाईफुल रे ॥ (२१)
य़हुँ राम गले बन, राजा कले दुःख मन ।
पुत्र न देखिले पराण तेजिले, दशरथ नृपराण ॥
जाईफुल रे ॥ (२२)
पञ्चबटी करि कुटी, राम दिन नेले काटि ।
सूर्पणखा नारी देखि चापधारी, नाक कान देले काटि ॥
जाईफुल रे ॥ (२३)
तहुँ से असुरी गला, खर दूषणे कहिला ।
जाणि तिनि भाइ आसिलेक धाइँ, राम-हस्ते प्राण गला ॥
जाईफुल रे ॥ (२४)
अति बेगे चळि गला, लङ्का गड़े प्रबेशिला ।
श्रीराम चरित सकळ बृत्तान्त, राबण आगे कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (२५)
सुबर्ण्ण मृग देखाइ, य़ति बेशे लङ्कासाइँ ।
पर्ण्णकुटी द्वारुँ सीता घेनि गला, पुष्पक रथे बसाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (२६)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, मृगभार कन्धे थोइ ।
पर्ण्णकुटी द्वारे अस्सि प्रबेशिले, सीतादेबी मठे नाहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (२७)
सीता-गुण गुणि राम, करन्ति अति कारुण्य ।
सङ्गे सउमित्रि प्रबोधि कहन्ति, न कान्द न कान्द राम ॥
जाईफुल रे ॥ (२८)
बन लता गिरि चाहिँ, पचारन्ति रघुसाइँ ।
के चोराइ नेला प्राणर बल्लभी, देखिथिले दिअ कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (२९)
तहुँ किछि दूर गले, जटायु पक्षी देखिले ।
सीताङ्क बारता कहिला से जटा, शुणि राम तोष हेले ॥
जाईफुल रे ॥ (३०)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, धीरे गले पथ बाहि ।
बाटरे शबरी देखिले श्रीहरि, तहिँ आम्ब फळ पाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३१)
चखा आम्ब फळ खाइ, केते दूर गले तहिँ ।
बाटरे कुक्कुट पक्षीकि भेटिले, सीता-बार्त्ता देला कहि ॥
जाईफुल रे ॥ (३२)
पम्पा सरोबर कूळे, राम लक्ष्मण मिळिले ।
चहुआ चकोइ शाप देइ राम, तहुँ बेनि भाइ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (३३)
गउड़ गोष्ठरे य़ाइ, प्रबेशिले रघुसाइँ ।
बोइले गोपाळ दुध किछि दिअ, रत्न मुदि बन्धा नेइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३४)
गउड़े कहन्ति हसि, ए केउँ बृक्षे फळिछि ।
दुध देबुँ नाहिँ मुदि य़ाअ नेइ, स्वर्ण्ण कि अपूर्ब अछि ॥
जाईफुल रे ॥ (३५)
कहुछन्ति सीतापति, गउड़ बाउड़ जाति ।
गाई रखि बने बुल अनुक्षणे, न जाण धर्मर रीति ॥
जाईफुल रे ॥ (३६)
क्षुधारे मागिलुँ क्षीर, तुम्भे कल अनादर ।
आम्भ शाप घेन नोहिबटि आन, दुध होइब रुधिर ॥
जाईफुल रे ॥ (३७)
तुम्भ नारीमाने य़ाइ, मुण्डे दधि-भाण्ड बहि ।
बेश्या प्राय होइ बिकि बुलुथिबे, ए ग्राम से ग्राम होइ ॥
जाईफुल रे ॥ (३८)
गोपाळे य़ोड़िले कर, आहे देब दया कर ।
देउअछुँ क्षीर सुकल्याण कर, घेन बिनति आम्भर ॥
जाईफुल रे ॥ (३९)
शुणि राम तोष हेले, गोपाळ-मुख चाहिँले ।
द्वापर य़ुगरे तुम्भर मन्दिरे, जन्म होइबुँ बोइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४०)
राम माल्यबन्त परे, बरषा काळे मिळिले ।
बक पक्षी ठारु बारता पाइण, ऋष्यमूके प्रबेशिले ॥
जाईफुल रे ॥ (४१)
बाळी डरे सुग्रीबर, लुचिथिला गिरि पर ।
पबनर सुत नाम हनुमन्त, सङ्गते अछइ तार ॥
जाईफुल रे ॥ (४२)
सुग्री हनुमान गले, राम लक्ष्मण भेटिले ।
सीताङ्क सङ्केत श्रीरामङ्कु देइ, पादे पड़ि जणाइले ॥
जाईफुल रे ॥ (४३)
कहन्ति प्रभु श्रीराम, काहिँकि लुचिछ बन ।
शुणि सुग्रीबर बाळी सामाचार, कहिला बाळीर गुण ॥
जाईफुल रे ॥ (४४)
सुग्री सङ्गे हले मित, काण्डे बाळी कले हत ।
किष्किन्ध्या कटक अङ्गदकु देइ, धराइले पाट छत्र ॥
जाईफुल रे ॥ (४५)
किष्किन्ध्या काण्ड चरित, एहिठारे समापत ।
दीन मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे देइ चित्त ॥
जाईफुल रे ॥ (४६)
कैळास-शिखरे बसि, कहुछन्ति काशीबासी ।
सामबेदुँ जात रामायण ग्रन्थ, सुमने शुण सुकेशी ॥
जाईफुल रे ॥ (४७)
सुन्दरा काण्डर बाणी, शुण गो देबी भबानी ।
शुणिले मुकत होइब पबित्र, काळ न बाधिब प्राणी ॥
जाईफुल रे ॥ (४८)
बरषा काळ बञ्चिले, कपि-बळ सज कले ।
चारि दिगे दूत पठाइले राम, हनु लङ्कागड़ गले ॥
जाईफुल रे ॥ (४९)
देखि ताकु लङ्कादेबी, बोइला तोते खाइबि ।
काहिँर मर्कट पशु ए कटक, तोते बाट न छाड़िबि ॥
जाईफुल रे ॥ (५०)
कोपे अञ्जनार बळा, चापोड़ाघात माइला ।
बर देला देबी श्रीराम-बान्धबी, य़ाइ खोज रे बाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (५१)
अशोक बने मिळिला, सीता सती ठाब कला ।
रत्न मुदि देइ सीताङ्क चरणे, पड़ि प्रबोधि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५२)
कहे बीर हनुमान, मागो ! स्थिर कर मन ।
राबणकु मारि तुम्भङ्कु उद्धरि, नेबे प्रभु रघुराण ॥
जाईफुल रे ॥ (५३)
तहुँ महाबीर गला, मधुबने प्रबेशिला ।
रम्भा-बने य़ेह्ने गज थिले तारे सेहिपरि मन्थिदेला ॥
जाईफुल रे ॥ (५४)
य़हुँ से पबन-बळा, मधुबन भाङ्गिदेला ।
राबणर आगे चार जणाइला, भो देब शिरी सरिला ॥
जाईफुल रे ॥ (५५)
माङ्कड़ गोटिए आसि, मधुबने अछि पशि ।
निमिष मात्रके एते बड़ बन, टाण करे देला नाशि ॥
जाईफुल रे ॥ (५६)
कोपे राबण प्रज्वळि, इन्द्रजितकु हकारि ।
बोइला काहिँर माङ्कड़ आसिछि, आण ताकु बेगे धरि ॥
जाईफुल रे ॥ (५७)
शुणि इन्द्रजित गला, हनुकु बान्धि आणिला ।
अनेक प्रकारे माड़ मारि ताकु, लङ्कागड़े बुलाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (५८)
लाञ्जे बसन गुड़ाइ, तैळ ढाळि देले तहिँ ।
सकळ असुर एक ठाब होइ, लाञ्जे लगाइले जूइ ॥
जाईफुल रे ॥ (५९)
य़हुँ से अग्नि जळिला, हनु य़े उठि बसिला ।
राबण-जगती उपरे मारुति, ब्रह्म अग्नि लगाइला ॥
जाईफुल रे ॥ (६०)
ए घर से घर होइ, हनु गला डेइँ डेइँ ।
शए क्रोश लङ्का सुबर्ण्णर पुर, तत्क्षणे देला पोड़ाइ ॥
जाईफुल रे ॥ (६१)
य़ेते पुत्र नाति घेनि, पळाइला बिंशपाणि ।
बोइला बिधाता कि दण्ड बिहिलु, माङ्कड़ हस्तरे आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६२)
कहे बीर हनुमान, शुण रे चोर राबण ।
सीता य़ोगुँ तोर सम्पत्ति सरिला, निश्चे लभिबु मरण ॥
जाईफुल रे ॥ (६३)
हनु लङ्कारु आसिला, श्रीराम पाशे भेटिला ।
भो प्रभु जगत-करता सीताङ्कु, देखिलि बोलि कहिला ॥
जाईफुल रे ॥ (६४)
सीताङ्क सन्देश आणि, कहिला से कपिमणि ।
शुणि रघुनाथ राइ कपि-य़ूथ, सेतुबन्ध बान्धिलेणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६५)
सुबळया परबते, बिजे प्रभु रघुनाथे ।
तेड़े बड़ गिरि कम्पि य़ाउअछि, माङ्कड़-मानङ्क घाते ॥
जाईफुल रे ॥ (६६)
य़ूथ कपि-बळ पूरि, शाळ शिळ तरु धरि ।
खि खि खुँ खुँ राब शुभइ शबद, कम्पिय़ाए बसुन्धरी ॥
जाईफुल रे ॥ (६७)
कपि-बळ सङ्गे घेनि, चळिगले रघुमणि ।
लङ्कागड़े य़ाइ प्रबेश होइले, हनु अङ्गदङ्कु आणि ॥
जाईफुल रे ॥ (६८)
धर धर मार मार, काहिँ गला सीता-चोर ।
सिंहर घरणी शृगाळ कि आणि, जीबन थिब कि तार ॥
जाईफुल रे ॥ (६९)
चार जणाइला य़ाइ, शुण देब लङ्कसाइँ ।
कपि-बळ राइ य़ुझिबार पाइँ, आसुछन्ति य़ति दुइ ॥
जाईफुल रे ॥ (७०)
शुणि राबण उठिला, इन्द्रजितकु राइला ।
बोइला कुमर सैन्य सज कर, शत्रुकु न कर हेळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७१)
असुरे शुणि धाइँले, श्रीराम सङ्गे य़ुझिले ।
महाघोर रण होइला संग्राम, राम-हस्ते केते मले ॥
जाईफुल रे ॥ (७२)
देखि कोपे मेघनाद, कला महाघोर नाद ।
श्रीराम लक्ष्मण आगरे य़ाइण, लगाइला महाय़ुद्ध ॥
जाईफुल रे ॥ (७३)
केते मते कला रण, जिणि न पारिला पुण ।
नागफाश नेइ राबण-तनय, बान्धिला राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७४)
श्रीराम लक्ष्मण दुइ, नागफाशे बन्दी थाइ ।
बिनता-नन्दन गरुड़ङ्कु मने, सुमरणा कले तहिँ ॥
जाईफुल रे ॥ (७५)
गरुड़ य़हुँ अइले, नाग-गण पळाइले ।
फिटिला बन्धन श्रीराम लक्ष्मण, पुणि उठि य़ुद्ध कले ॥
जाईफुल रे ॥ (७६)
इन्द्रजित कुम्भकर्ण्ण, य़ेते थिले दुष्ट-गण ।
सकळ असुर गले य़मपुर, माइले राम लक्ष्मण ॥
जाईफुल रे ॥ (७७)
राबणर दश मुण्ड, काटि कले खण्ड खण्ड ।
स्वर्गे देबगणे जयध्वनि कले, कम्पिला चौद ब्रह्माण्ड ॥
जाईफुल रे ॥ (७८)
बसुमती तोष हेला, देबताङ्क दुःख गला ।
लङ्का जय करि सीताङ्कु लभिले, प्रभु दशरथ-बळा ॥
जाईफुल रे ॥ (७९)
राम-पादे बिभीषण, पशिला य़ाइ शरण ।
राबणर नारी नाम मन्दोदरी, आणि कले समर्पण ॥
जाईफुल रे ॥ (८०)
बिभीषण-शिरे पाट, बान्धिले कौशल्या-चाट ।
चन्द्र सूर्य़्य थिबा परिय़न्ते सुखे, भोग य़ा हे लङ्का-राट ॥
जाईफुल रे ॥ (८१)
रामचन्द्र सीता बेनि, कपि अङ्गद पाबनि ।
लङ्का कटकरु बाहुड़िले राम, भाइ भारिजाङ्कु घेनि ॥
जाईफुल रे ॥ (८२)
अय़ोध्या नगरे आसि, प्रबेशिले रघुशिषि ।
मातागणे पुत्र बधू देखि तोष, प्रजागण हेले खुसि ॥
जाईफुल रे ॥ (८३)
अय़ोध्यारे राम राजा, सुखे पाळिले परजा ।
भ्रत शत्रुघन लक्ष्मण सहिते, राम-पादे कले पूजा ॥
जाईफुल रे ॥ (८४)
हनु अङ्गद सुग्रीब, सुषेण आदि जाम्बब ।
मेलाणि मागिण किष्किन्ड्याकु गले, कहिलेटि सदाशिब ॥
जाईफुल रे ॥ (८५)
पार्बती बोलन्ति नाथे, कथाए पड़िला चित्ते ।
जाईफुल बोलि काहाकु कहन्ति, एहा कहिदिअ मोते ॥
जाईफुल रे ॥ (८६)
शुण देबी शाकम्भरी, कहिलुँ तोते बिचारि ।
जीब परमर भिन्नाभिन्न नाहिँ, तुम्भे आम्भे य़ेउँपरि ॥
जाईफुल रे ॥ (८७)
जीबकु य़े जाईफुल, सङ्गतरे कर तुल ।
साधुए जाणन्ति मूर्खे न बुझन्ति, पिण्ड ब्रह्माण्ड बिचार ॥
जाईफुल रे ॥ (८८)
उड़िले परम हंस, जीब गले तार पाश ।
पुरुणाकु छाड़ि नूआ गृह लोड़ि, आनन्दे करइ बास ॥
जाईफुल रे ॥ (८९)
रामायण सुधा-बारि, पिइ तोष शाकम्भरी ।
श्रीराम-चरित परम पबित्र, शुणि नरे य़ाअ तरि ॥
जाईफुल रे ॥ (९०)
खड़िआळ राज्य-बासी, सिनापालि-ग्रामबासी ।
उदन्ती नदीर पिइ सुधा-नीर, दिन सरु नाहिँ बसि ॥
जाईफुल रे ॥ (९१)
शुण साधु सुज्ञ नर, मो दोष थिले न धर ।
बैश्य मनोहर मेहेर कहइ, राम-पादे य़ोड़ि कर ॥
जाईफुल रे ॥ (९२)