Kedarnath Singh

7 July 1934 / Chakia, Ballia, Uttar Pradesh / India

नदी - Poe

अगर धीरे चलो
वह तुम्हे छू लेगी
दौड़ो तो छूट जाएगी नदी
अगर ले लो साथ
वह चलती चली जाएगी कहीं भी
यहाँ तक- कि कबाड़ी की दुकान तक भी
छोड़ दो
तो वही अंधेरे में
करोड़ों तारों की आँख बचाकर
वह चुपके से रच लेगी
एक समूची दुनिया
एक छोटे से घोंघे में

सच्चाई यह है
कि तुम कहीं भी रहो
तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी
प्यार करती है एक नदी
नदी जो इस समय नहीं है इस घर में
पर होगी ज़रूर कहीं न कहीं
किसी चटाई
या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई

कभी सुनना
जब सारा शहर सो जाए
तो किवाड़ों पर कान लगा
धीरे-धीरे सुनना
कहीं आसपास
एक मादा घड़ियाल की कराह की तरह
सुनाई देगी नदी!
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