Kazim Jarwali

Shair-e-Fikr] (15 June 1955 / Jarwal / India

मै जिंदा हूँ - Poem by Kazim Jar

हवा में ज़हर घुला है मगर मै जिंदा हूँ ,
हर एक सांस सज़ा है मगर मै जिंदा हूँ ।

किसी को ढूंडती रहती हैं पुतलियाँ मेरी,
बदन से रूह जुदा है मगर मै जिंदा हूँ ।

मेरे ही खून से रंगीं है दामने क़ातिल ,
मेरा ही क़त्ल हुआ है मगर मै जिंदा हूँ ।।
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