Kazim Jarwali

Shair-e-Fikr] (15 June 1955 / Jarwal / India

दोहे - Poem

ये तो वक़्त बताएगा किसका गहरा वार,
एक जानिब तलवार है एक जानिब किरदार ।।
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गर सर को मिल जाएगी तेरे दर की धूल,
अंगारे बन जायेंगे पाँव के नीचे फूल ।।
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एक यही बस आएगा रोज़े महशर काम,
पाया है जो पाँच से मुट्ठी भर इस्लाम ।।
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एक आंसू किरदार की मैली चादर धोये,
जिसको जन्नत चाहिए मजलिस मे वो रोये ।।
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ये हमको मालूम है ये हमको है याद,
जितना उसको रोयेंगे उतने होंगे शाद ।।
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लेता है अंगड़ाईयाँ जीने का एहसास,
हर मुश्किल का तोड़ है एक नाम-ऐ-अब्बास ।।
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बदला है आशूर को जीवन का हर रूप,
कडवी कडवी छाँव है मीठी मीठी धूप ।।
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मैंने तेरी राह में लीं यूँ आँखें मूँद ,
रौज़े की देहलीज़ पर जैसे मोम की बूँद ।।
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