Javed Akhtar

17 January 1945 - / Madhya Pradesh / India

हम तो बचपन में भी अकेले थे - Poem by Javed Akhtar

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे

थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे

आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं
उन दिनों फ़ाके भी हमने झेले थे

ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती
मौत के अपने भी सौ झमेले थे
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