Jagdish Gupt

1924–2001 / India

छायाभास - Poem by Jag

बचपन में
काग़ज़ पर

स्याही की बूंद डाल
कोने को मोड़ कर
छापा बनाया

जैसा रूप
रेखा के इधर बना,
वैसा ही ठीक उधर आया।

भोर के धुंधलके में
ऎसी ही लगी मुझे
छतरीदार नाव के
साथ-साथ चलती हुई छाया ।
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