Imam Baksh Nasikh

1776 - 1838 / Faizabad

Saath apne jo mujhe yaar ne sone na diyaa

साथ अपने जो मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर मुझको दिल-ए-ज़ार ने सोने न दिया

ख्वाब ही में नज़र आता वोह शब-ए-हिज्र कहीं
सो मुझे हसरत-ए-दीदार ने सोने न दिया

खुफ्तगी बख्त की क्या कहिये की जुज़ ख्वाब-ए-अदम
उम्र भर दीदा-ए-बेदार ने सोने न दिया

यही सय्यद गिला करता है मेरा, हर सुबह
नाला-ए-मुर्ग-ए-गिरफतार ने सोने न दिया

समझे थे बाद फना पायेंगे राहत 'नासिख'
हश्र तक वादा-ए-दीदार ने सोने न दिया
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