Gulab Khandelwal

21 February 1924 - / Navalgarh / India

देखते-देखते - Poem by Gulab Kha

देखते-देखते,
हमारा सारा जीवन एक सपने की तरह कट जाता है,
हम जो कुछ भी करें,
दो-चार शब्दों में अँट जाता है;
शेष तो शून्य है, माना
पर कहाँ जाता है भागफल
जब सब कुछ काल-भाजक द्वारा
पूरा-का-पूरा बँट जाता है?
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