Gulab Khandelwal

21 February 1924 - / Navalgarh / India

चाँदनी विदा ले रही सबसे - Poem by Gulab Khandelwal

चाँदनी विदा ले रही सबसे

भू से, वन से, कुंज-भवन से
कंपित बेलों से, हिमकण से
कलि से, तितली से, अलिगण से,
तरु से, पत्तों से, फूलों से,
परिमल से, पिकरव से
चाँदनी विदा ले रही सबसे

मुख पर घन-अवगुंठन झीना
रो-रो दृग नलिनी श्री-हीना
करुण, सजल किरणों की वीणा
खिल-खिल हँसती हुई पुलिन पर
मिल न सकेगी अब से
चाँदनी विदा ले रही सबसे

तम से झिलमिल प्रियतम से मिल
मूक, विवश मुड़ती-सी, धूमिल
झरते वकुल, रो रही कोकिल
दीपक हिल-हिल माँग रहा है
अंतिम चुंबन कब से

चाँदनी विदा ले रही सबसे
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