Gopal Singh Nepali

1911–1963 / India

कवि की बरसगाँठ - Poem by Gopal Singh N

उन्तीस वसन्त जवानी के, बचपन की आँखों में बीते
झर रहे नयन के निर्झर, पर जीवन घट रीते के रीते
बचपन में जिसको देखा था
पहचाना उसे जवानी में
दुनिया में थी वह बात कहाँ
जो पहले सुनी कहानी में
कितने अभियान चले मन के
तिर-तिर नयनों के पानी में
मैं राह खोजता चला सदा
नादानी से नादानी में
मैं हारा, मुझसे जीवन में जिन-जिनने स्नेह किया, जीते
उन्तीस वसन्त जवानी के, बचपन की आँखों में बीते
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