Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

ख़ुशियों के गुप्तचर - Poem by Geet Chaturvedi

एक पीली खिड़की इस तरह खुलती है
जैसे खुल रही हों किसी फूल की पंखुड़ियां.

एक चिड़िया पिंजरे की सलाखों को ऐसे कुतरती है
जैसे चुग रही हो अपने ही खेत में धान की बालियां.

मेरे कुछ सपने अब सूख गए हैं
इन दिनों उनसे अलाव जलाता हूं

और जो सपने हरे हैं
उन्हें बटोरकर एक बकरी की भूख मिटाता हूं

मेरी भाषा का सबसे बूढ़ा कवि लाइब्रेरी से लाया है मोटी किताबें
चौराहे पर बैठ सोने की अशर्फि़यों की तरह बांटता है शब्द

मेरे पड़ोस की बुढ़िया ने ईजाद किया है एक यंत्र जिसमें आंसू डालो, तो
पीने लायक़ पानी अलग हो जाता है, खाने लायक़ नमक अलग.

एक मां इतने ममत्व से देखती है अपनी संतान को
कि उसके दूध की धार से बहने लगती हैं कई नदियां

जो धरती पर बिखरे रक्त के गहरे लाल रंग को
प्रेम के हल्के गुलाबी रंग में बदल देती हैं.
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