Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

मनमाना - Poem by G

मैं रात की बग़ल में लेटा हूं
मेरी पीठ पर तुम्हारी चूड़ी का सिकुड़ा हुआ निशान है
एक करवट लेता हूं तो दब-दब जाती है सदियों पुरानी कोई नींद
मेरी उबासी स्मृति है तुम्हारे सहस्त्राब्दियों ताज़े यौवन की
मैं क्लांत मनाधीश नींद को अपना मानने की भूल करता
तुम्हारी समस्त भावनाओं का सलाद है यह क्लांति
तुम्हारा ही चमत्कार है ओ प्रेम मेरे जीवन के और जीवन के पार के भी, ओ प्रेम
कि हर्ष के बीज से अवसाद का फल उगाते हो
हृदय के रक्त में थलगंगा की क़लम लगाते हो
स्वप्नों का कौमार्य अक्षुण्ण भला क्यों होता है?
नींद का सौंदर्यशास्त्र हैं स्वप्न
नींद आती उसी तरह जैसे मनमाना करने में प्रेम जितना आनंद पाने वाली प्रेमिका
मनमाना करके प्रेम जितनी ही पीड़ा देने वाला प्रेमिका
जिसे मन से माना
उससे असंभव प्रेम की उम्मीद करता
रात की बग़ल में लेट नींद को अपनी देह पर उसके होंठों की छुअन की तरह उतरता पाने की उम्मीद में
मन को मारता उसी के इंतज़ार में डूबता अपनी थिरता में तिरता
मनमाना करने वाली आती जब तब तक प्रेम की इच्छा बारिश के बाद सूख चुकी सड़क जैसी चितकोबरी हो जाती
अपनी-सी लगने वाली नींद उगती मन और देह के क्षितिज पर
उगती रात के ख़त्म हो जाने के नारंगी घोषणापत्र की तरह
तब तक करवटों की सिलवटों से उठकर काम पर जाने की हड़बड़ी मुझे अंकवारी भर चुकी होती
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