Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

मालिक को ख़ुश करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाला मानवीय दिमाग़ और... - Poem by Geet Chaturvedi

राजकुमारी महल के बाग़ में विचर रही थीं कि एक काँटे ने उनके पैरों के साथ गुस्ताख़ी की और बजाय उसे दंडित करने के राजकुमारी बहुत रोईं और बहुत छटपटाईं और बड़े जतन से उन्हें पालने वाले राजा पिता तड़पकर रह गए और महल के गलियारों और बार्जों में खड़े हो धीरे-धीरे बड़ी हो रही राजकुमारी के पैरों से किसी तरह काँटा निकलवाया और हुक्मनामा जारी करवाया कि राज्य में काँटों की गुस्ताख़ी हद से ज़्यादा हो गई है और उन्‍हें समाप्त करने की मुहिम शुरू कर दी जाए पर योजनाओं के असफल रहने और मुहिमों के बाँझ रह जाने की शुरुआत के रूप में ढाक बचा और ढाक के तीन पात बचे तो राजा ने आदेश दिया कि सारे राज्य की सड़कों और महल के पूरे हिस्से की ज़मीन पर फूलों की चादर बिछा दी जाए पर चूँकि फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं सो यह संभव न हुआ तो राजा ने अपने एक भरोसेमंद मंत्री को इसका इलाज निकालने की ज़िम्मेवारी दी तो उस मंत्री ने बजाय सारी ज़मीन पर फूल बिछाने के राजकुमारी के पैरों पर ध्यान जमाया और नर्म कपड़े की कई तहों को चिपकाकर मोटी-सी कोई चीज़ बनाई और राजकुमारी को पहना दी जिसके पार काँटा क्या काँटे का बाप भी नहीं पहुंच सकता था और इस तरह एक आदिम जूते का निर्माण हुआ हालाँकि जूतेनुमा एक चीज़ बनाने वाले उसे मंत्री क़िस्म के मानव ने राजकुमारी क़िस्म की किसी महिला के पैरों को काँटों से बचाने के लिए इलाज ढूंढ़ने से पहले ख़ुद भी कई बार काँटों को भुगता था और दूसरे तमाम लोगों के भी काँटा चुभते देखा था पर नौकर की जमात का वह व्यक्ति मात्र स्वामीभक्ति के पारितोषिक के लिए ही जूता बना पाया।
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