Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

मुंबई नगरिया में मेरा ख़ानदान - Poem by Geet Chaturvedi

पिता पचपन के हैं पैंसठ से ज़्यादा लगते हैं

पच्चीस का भाई पैंतीस से कम का

क्या इक्कीस का मैं तीस-बत्तीस का दिखता हूं

माँ-भाभी भी बुढ़ौती की देहरी पर खड़े

बिल्‍कुल छोटी भतीजी है ढाई साल की

लोग पूछते हैं पाँच की हो गई होगी

पता नहीं क्या है परिवार की आनुवांशिकता

जीन्स डब्ल्यूबीसी हीमोग्लोबीन हार्मोन्स ऊतक फूतक सूतक

क्या कम है क्या ज़्यादा

धूप में रखते हैं बदन का पसीना

या पहले-चौथे ग्रह में बैठे वृद्ध ग्रह का कमाल

चिकने चेहरों से भरी इस मुंबई नगरिया में

मेरा ख़ानदान कितना संघर्षशील है सो असुंदर है

अभी कल ही तो भुजंग मेश्राम पूछकर गया था

उम्र से अधिक दिखना औक़ात से अधिक दिखना होता है क्या?

अभी कल ही तो पूछ कर गया था भुजंग मेश्राम

माईला… ये पचास साल का लोकतंत्र

उन लोगों को कायको पांच हज़ार का है लगता?

(१९९८)
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