Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

बड़े पापा की अंत्‍येष्टि - Poem by Geet Chaturvedi

फूल चढ़ाने के बाद उस लाश को घेरकर हम खड़े हो गए थे।
सम्‍मान से सिर झुकाए. उसका चेहरा निहारते।
हममें से कई को लगा कि पल-भर को लाश के होंठ हिले थे।
हाँ, हममें से कई को लगा था वैसा, पर हम चुप थे।
एक ने उसके नथुनों के पास उँगली रखकर जाँच भी लिया था।

उसके दाह के हफ़्तों बाद तक लोगों में चर्चा थी कि
मरने के बाद भी उस लाश के होंठ पल-भर को हिले थे।
कैफ़े चलाने वाली एक बुढि़या, जो रिश्‍ते में उसकी कुछ नहीं लगती थी,
बिना किसी भावुकता के उसने एक रोज़ मुझसे कहा,
मुझे विश्‍वास था, वह आएगा, मरने के बाद भी आएगा
अपना अधूरा चुम्बन पूरा करने।
53 साल पहले जब वह 17 का था
गली के पीछे टूटे बल्‍ब वाले लैम्पपोस्‍ट के नीचे
एक लड़की का चुम्बन अधूरा छोड़कर भाग गया था।
107 Total read