Geet Chaturvedi

27 November 1977 - / Mumbai / India

आलाप में गिरह (कविता) - Poem by Geet Chaturvedi

जाने कितनी बार टूटी लय
जाने कितनी बार जोड़े सुर
हर आलाप में गिरह पड़ी है

कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही ढह गए
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि अगले को दया आ गई
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हँसी चुराई
सबने कहा छोड़ो भी

और हमने छोड़ दिया
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